गुरुवार, 2 मार्च 2017

खिलौना माटी का - कवि प्रदीप

कवि प्रदीप
तूने खूब रचा भगवान् 
खिलौना माटी का 
इसे कोई ना सका पहचान 
खिलौना माटी का

वाह रे तेरा इंसान विधाता 
इसका भेद समझ में ना आता 
धरती से है इसका नाता 
मगर हवा में किले बनाता 
अपनी उलझन आप बढाता 
होता खुद हैरान
खिलौना माटी का
तूने खूब रचा खूब गड़ा  
भगवान् खिलौना माटी का

कभी तो एकदम रिश्ता जोड़े 
कभी अचानक ममता तोड़े 
होके पराया मुखड़ा मोड़े 
अपनों को मझधार में छोड़े 
सूरज की खोज में इत उत दौड़े 
कितना ये नादान 
खिलौना माटी का
तूने खूब रचा खूब गड़ा  
भगवान् खिलौना माटी का

~ प्रदीप

कुछ भी बन बस कायर मत बन / दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार
कुछ भी बन बस कायर मत बन,
ठोकर मार पटक मत माथा तेरी राह रोकते पाहन।
कुछ भी बन बस कायर मत बन।

युद्ध देही कहे जब पामर,
दे न दुहाई पीठ फेर कर
या तो जीत प्रीति के बल पर
या तेरा पथ चूमे तस्कर
प्रति हिंसा भी दुर्बलता है
पर कायरता अधिक अपावन
कुछ भी बन बस कायर मत बन।

ले-दे कर जीना क्या जीना
कब तक गम के आँसू पीना
मानवता ने सींचा तुझ को
बहा युगों तक खून-पसीना
कुछ न करेगा किया करेगा
रे मनुष्य बस कातर क्रंदन
कुछ भी बन बस कायर मत बन।

तेरी रक्षा का ना मोल है
पर तेरा मानव अमोल है
यह मिटता है वह बनता है
यही सत्य कि सही तोल है
अर्पण कर सर्वस्व मनुज को
न कर दुष्ट को आत्मसमर्पण
कुछ भी बन बस कायर मत बन।

~ दुष्यंत कुमार

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